मंगलवार, 27 जून 2017

कर्म का रहस्य

कर्म का रहस्य

केवल सृष्टिक्रम से होने वाले कार्य ही निर्धारित होते हैं। इसके विपरीत जो भी कार्य हैं, वे सभी जीवात्मा के अधीन हैं और कभी निर्धारित नहीं होते। जैसे दिन के बाद रात आनी ही है। यह सृष्टिक्रम से है और इसका आंकलन किया जा सकता है किंतु कोई व्यक्ति कभी ऐसे यह कार्य करेगा यह कभी नहीं कहा जा सकता। जीव के अधीन कार्य उसकी अपनी इच्छा पर निर्धारित होते हैं। इच्छा जीव के अधीन है और जीव स्वतंत्र है। अर्थात यदि जीव कोई परिणाम लेना चाहता है तो उस परिणाम को प्राप्त करने के लिए उससे संबंधित कर्म उसे करना ही होगा। कार्य नहीं तो परिणाम भी नहीं। प्रतिक्षण वह कार्य को करने के लिए स्वतंत्र है किंतु वह इच्छा करेगा या नहीं, यह कभी भी पूर्वनिर्धारित नहीं होता।
अपने भोगों को जीवात्मा अपने पूर्व कर्मों के फलों के रूप में है। जब उसने वह कर्म कभी किया था तब वह स्वतंत्र था किंतु उसका फल भोगने में अब वह परतंत्र है। यही न्याय भी है। इसीलिए फलित ज्योतिष एक आधारहीन मत है तथा अविद्या है जिसका सिद्धांत से कोई संबंध नहीं है। जीवात्मा को चाहिए कि वह सिद्धांत को अपने अवचेतन मन में उतारे, अपनी कर्म करने की स्वतंत्रता को पहचाने और इस बात पर दृढ़ विश्वास रखे कि उसके सन्दर्भ में कुछ भी पूर्वनियोजित नहीं है। इच्छित परिणाम के लिए उसे कर्म करना ही होगा। हर क्षण उसे अधिक से अधिक अच्छे कर्म करके अपने लिए पुण्य कर्माशय विकसित करना चाहिए क्योंकि जो क्षण उसके हाथों में है, वैसा क्षण उसे पुनः उपलब्ध नहीं होगा।

कोई टिप्पणी नहीं: