कोई जितना अधिक साधन हीन होगा, उसे उतने ही अधिक साधनों की आवश्यकता होगी। हट्टा कट्टा आदमी बैसाखी लेकर नहीं चलता। यदि उसे कोई बैसाखी दे तो वह उसे अपमान समझेगा। इसी के विपरीत एक लंगड़े व्यक्ति के लिए बैसाखी आवश्यकता है। जो उसे बैसाखी देगा, वह उसके प्रति कृतज्ञ होगा। अंतर केवल सामर्थ्य का है।
मनुष्य जीव देह धारी है। हाथ पैर उसकी आवश्यकता हैं जिनसे वह अपने कार्य सिद्ध करता है। वह अल्पज्ञ है यानी सीमित ज्ञान वाला। वह एकदेशी है यानी उसका फैलाव केवल उसके अपने शरीर तक ही सीमित है। वहीं ईश्वर सर्वव्यापक है यानी सर्वत्र व्याप्त है। वह सर्वज्ञ है यानी सब जानने वाला। जो सब कुछ जानने वाला हो और कण कण में व्याप्त हो, उसे किस हाथ पैर की जरूरत हो सकती है? वह तो अपना काम एक electron में भी कर रहा है और पृथ्वी के गर्भ से पर्वत निकलते समय भी कर रहा है! जैसे एक computer programmer अपना प्रोग्राम बना कर छोड़ देता है और उसके बाद सॉफ्टवेयर उसके निर्देशानुसार काम करता रहता है, ठीक वैसे ही सृष्टि का programmer वो परमात्मा है। फर्क इतना है बस कि उसके बनाये प्रोग्राम में bugs या त्रुटियाँ नहीं होतीं क्योंकि वह सर्वज्ञ है। यही है सामर्थ्य का अंतर! निराकार रहना उसकी मजबूरी या दोष नहीं है। यह उसका ऐश्वर्य है, उसका वास्तविक स्वरुप है। हमारा देह धारण करना हमारी लाचारी है। यही सिद्ध करता है कि हम अल्प सामर्थ्यवान और अल्पज्ञ हैं।
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