जीवन और हमारा उत्तरदायित्व
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सृष्टि शुरू होते ही ईश्वर ने सृष्टि रचने के पीछे का प्रयोजन और संसार का भोग कैसे करना है, का पूरा आवश्यक ज्ञान वेदों के माध्यम से मनुष्य मात्र को दिया। कैसे सुखी रहना है, कैसे सफल होना है और कैसे दुखों से दूर रहना है, का पूरा ज्ञान वेद में ईश्वर ने दिया ताकि उसकी संतानों को चुनौतियाँ न देखनी पड़े। सुख बढ़ाने वाले कर्मों को मनुष्य करता है तो सुखी और दुःख बढ़ाने वाले कर्मों को करता है तो दुखी रहता है ईश्वर के system के अनुसार। ईश्वर व्यक्ति को सुखी या दुखी प्रत्यक्ष रूप से कभी भी नहीं करता! उसका काम केवल व्यवस्था करने का था और मनुष्य को कर्म करने के लिए स्वतंत्र रखने का था जो उसने किया। अब मनुष्य को चाहिए कि वह उन नियमों को जाने जो ईश्वर ने बनाये हैं और उन पर चलकर सुखी हो क्योंकि वह कर्मों का फल ही संसार में भोगेगा। वे कर्म कौन से हैं जो कल्याणकारी हैं, उसका ज्ञान वेद में ईश्वर दे चुके हैं। यदि कोई सत्य को जानने के लिए प्रयासरत है और वेद ज्ञान से वंचित है तो वह अधिक दिनों तक वंचित नहीं रह सकेगा लेकिन जो वेद के समीप होकर भी दिग्भ्रमित है या अपने मिथ्याज्ञान पर अभिमान करता है तो समझ लो वह जल से भरा मटका लेकर रेगिस्तान में कुएं की तलाश में है।
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