शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2015

श्री दरियाव दिव्य वाणी

दरिया दीपक राम का गगन मंडल मे जोय ,
तीन लोक चौदह भवन सहज उजाला होय।।

दरिया राजस दूर कर ररंकार लौ लाय ,
राम छांड राजस गहे भौ भौ पर ले जाय।।

शब्द  सूहाया बादशाह साघन सैना जान ,
सैना सहजे आवसी जो चढ आवे सुल्तान।।

रहनी करनी साध की एक राम का ध्यान,
बाहर मिलता सो मिलै भीतर  आतम ज्ञान ।।

तरवर छाना फल नहि पिरथीसे बनराय ,
सतगुरु छाना सिष नहि  दूर देशातंर जाय।।

दरिया संगत साधकी ,सहजै पलटै बंस।
कीट छांड़ मुक्ता चुगै ,होय काग से हंस।।

सांची संगत साध की ,जो कर जानै कोय ।
दरिया  ऐसी सो करे , (जेहिं )  कारज करना होय।।

दरिया  संगत साधकी,  सहजै पलटै अंग ।
जैसे संग मजीठ के  , कपड़ा होय सूरंग।।

दरिया संगत साधकी, कल विष नासे धोय ।
कपटी की संगत किये, आपहू कपटी  होय।।

सतगुरु को परसा नहीं ,सूमिरा नाहीं राम ।
ते नर पसू समान हैं , साँस लेत बेकाम ।।

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