दरिया दीपक राम का गगन मंडल मे जोय ,
तीन लोक चौदह भवन सहज उजाला होय।।
दरिया राजस दूर कर ररंकार लौ लाय ,
राम छांड राजस गहे भौ भौ पर ले जाय।।
शब्द सूहाया बादशाह साघन सैना जान ,
सैना सहजे आवसी जो चढ आवे सुल्तान।।
रहनी करनी साध की एक राम का ध्यान,
बाहर मिलता सो मिलै भीतर आतम ज्ञान ।।
तरवर छाना फल नहि पिरथीसे बनराय ,
सतगुरु छाना सिष नहि दूर देशातंर जाय।।
दरिया संगत साधकी ,सहजै पलटै बंस।
कीट छांड़ मुक्ता चुगै ,होय काग से हंस।।
सांची संगत साध की ,जो कर जानै कोय ।
दरिया ऐसी सो करे , (जेहिं ) कारज करना होय।।
दरिया संगत साधकी, सहजै पलटै अंग ।
जैसे संग मजीठ के , कपड़ा होय सूरंग।।
दरिया संगत साधकी, कल विष नासे धोय ।
कपटी की संगत किये, आपहू कपटी होय।।
सतगुरु को परसा नहीं ,सूमिरा नाहीं राम ।
ते नर पसू समान हैं , साँस लेत बेकाम ।।
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